कहानी के मुख्य किरदार है ऋचा ( सान्या मल्होत्रा) , उसके पति दिवाकर कुमार, और उसके ससुर, अश्विन कुमार (कंवलजीत सिंह), . कहानी की शुरुआत होती है ऋचा के अरेंज मैरिज से जो कि एक पढ़ी लिखी होनहार लड़की है , और शादी करके इस सभ्य समाज के एक घर में बहू बनकर आती है जहां शुरू में सबकुछ बहुत ही सुहाना लगता है . ऋचा की सुबह अपने सास के साथ किचेन से शुरू होती है और उसी किचन में रात हो जाती है . ससुर और पति के लिए गरम फुल्के बनाने से लेकर सिलबट्टे पे चटनी पीसने और हाथ से कपड़े साफ करने के बाद भी जिसकी कोई अहमियत नहीं होती . इस फिल्म में सिलबट्टे की चटनी के स्वाद से लेकर खाना पकाने की सही तरीका क्या होता है इन सब पे बात की गई है . और ऋचा कब इस प्यार भरे रिश्ते में घुटने लगती है ये कहा तो नहीं गया है लेकिन एक दर्शक होने के नाते आपको खुद महसूस होने लगेगी . इस मूवी को देखकर आपको ये अहसास होगा कि ये कहानी हमारे समाज की लगभग हर हाउसवाइफ का है और आपको उनका दर्द भी महसूस होने लगेगा।
फिल्म में ऋचा की कहानी के साथ साथ उसकी सास और मां की कहानी भी दिखाई है जिनकी पूरी जिंदगी केवल अपने परिवार और घर संभालने में गुजर गई . ऋचा की सास एक पी एच डी होल्डर थी बावजूद इसके उन्होंने केवल अपने परिवार को संभालने की जिम्मेदारी को सबसे ऊपर रखा . जहां एक तरफ आपको इस फिल्म की हर औरत केवल घर के कामों में उलझी दिखेंगी भी दूसरी ओर सारे पुरुष ऐसे हैं जो एक उंगली तक नहीं उठाते .
इस फिल्म की आम कहानी ही इसे खास बनाती है . यह फिल्म समाज को एक आईना दिखाने का काम करेगी और जिसमें आपको साफ नजर आएगा कि किस तरह एक औरत अपने सारे सपने सारी ख्वाहिशें भूल कर अपना सारा जीवन त्याग देती है और फिर भी उसका कोई मोल नहीं होता है . यह फिल्म आज की घरेलू महिलाओं के मुद्दों को भर करीब से दिखाता है .
अब सवाल ये भी आता है कि आखिर ऋचा इस दलदल से बाहर कैसे निकलती है , हालांकि ये जाने के लिए तो आपको फिल्म देखनी होगी . हां इस फिल्म का अंत बहुत ही शांत है , हमारी असल दुनिया में ऐसा नहीं होता , इतनी आसानी से महिलाएं सब छोड़ के आगे नहीं बढ़ पाती . लेकिन जो ऋचा ने किया उसके लिए वहीं सही था .
वाकई ये मूवी देखने के काबिल है .