प्राचीन समय में गांवों में मीठे और निर्मल पानी का एकमात्र स्रोत कुआं हुआ करता था। इसके धार्मिक महत्व के कारण भी कुएं का विशेष स्थान था, जहां शुभ और मांगलिक कार्यों की शुरुआत परिक्रमा से होती थी। लेकिन समय के साथ कुएं धीरे-धीरे समाप्त होते गए। अब एक बार फिर से कुओं को सहेजने और संवारने की मुहिम शुरू हो गई है। मनरेगा के तहत कुएं का कायाकल्प करने के लिए कार्ययोजना बनाई जा रही है, जिसमें पहले चरण में 223 कुओं का जीर्णोद्धार किया जाएगा।
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पिछले साल ग्राम पंचायतों में रोजगार सेवकों द्वारा कुएं का सत्यापन किया गया। यह सत्यापन बताता है कि पहले से स्थापित और विश्वसनीय जल स्रोतों, जिनमें से कई कुएं अब खत्म हो चुके हैं, को पुनः अस्तित्व में लाने की जरूरत है। पोर्टल पर इन कुओं की स्थिति को अपलोड किया गया और नए वित्तीय वर्ष में इन कुओं के संरक्षण की तैयारी की जा रही है। मनरेगा के तहत इन कुओं का जीर्णोद्धार किया जाएगा। बलरामपुर जिलें के नौ ब्लॉकों के खंड विकास अधिकारियों को कार्य योजना तैयार करने का निर्देश दिया गया है। इसके साथ ही कुओं की नियमित सफाई की व्यवस्था भी सुनिश्चित की जाएगी, ताकि उनकी स्थिति फिर से बिगड़े नहीं। विभागीय अभिलेखों में इन कुओं को दर्ज किया जाएगा और पंचायत की परिसंपत्तियों में इनका विशेष स्थान होगा।
कार्ययोजना तैयार करने के निर्देश
जिले के नौ ब्लॉकों के खंड विकास अधिकारियों को मनरेगा के तहत कुओं के जीर्णोद्धार की कार्ययोजना तैयार करने का निर्देश दिया गया है। इस पहल से गांवों में जीर्ण-शीर्ण हो चुके कुओं का मरम्मत कर उन्हें फिर से उपयोग के योग्य बनाया जाएगा - सुशील कुमार अग्रहरि, डीसी मनरेगा